प्रिय मित्रों,
आज दिनाँक 08/02/2018 सायंकाल आपसे मिल रहा हूँ तो कुछ बिंदु आपसी संवाद हेतु।
1.7 सीपीसी का एरियर-बडे दिनों बाद कोई अच्छी खबर आई,देर से ही सही 7 सीपीसी का एरियर मिलना इस माह में संभव हो गया है।उससे भी अच्छी बात की किसी नेता या संघ ने ये दावा नही किया कि ये उनके कारण मिल रहा है।
2.पोस्को की धारा-आजकल सेवाकालीन प्रशिक्षण हेतु जिट ग्वालियर में हूँ,आज बड़े विस्तार से इस पर चर्चा हुआ,निराशा इस बात से की हम अपने साथियों को इस दैत्य कानून के बारीकियों से संभलने और बचाव के हेतु सलाह छोड़िये चर्चा तक नही कर रहें।
ईस्वर करें आशंका निर्मूल हो पर ये कानून और इसके 81B की तरह दुरुपयोग खासकर आपसी खुनन्स को निकालने हेतु हो सकता है।सलाह इतनी की जानकारी रखें और इससे बचने और दुरुपयोग को रोकने हेतु उपायों पर भी चर्चा करें।
3.पुस्तकालय अध्यक्षों के विद्यालय के रजिस्टर में नाम -इस हेतु बड़े लोगो के प्रश और अनुभव और अपेक्षा है।अब जबकि केवल पुस्तकालय अध्यक्ष ही मिसीलिनीयस के श्रेणी में रह गए है,क्या उनका नाम वरीयता के अनुसार ,tgt के बाद या सभी शिक्षकों के नाम के बाद होना चाहिए और नियम क्या है,आपके विचार और कोई सर्कुलर इस बारे में आपके संज्ञान में हो तो अवश्य पड़ना चाहूंगा।
अंत मे आदरणीय प्रधानमंत्री जी का परीक्षा के भय को दूर करने पर पुस्तक और अब बच्चों से संवाद ,निश्चित रूप से बच्चों के मनोबल को न केवल बढ़ायेगा बल्कि ,शिक्षकों, परिवार और समाज को इस हेतु सजग और सहनशील बनाएगा।एक अच्छा कदम।
अंत मे हरिवंश राय जी की एक कविता से इस अंक का समापन,इस आशा से की आपको ये पसंद आएगी।
"अर्पित तुमको मेरी आशा, और निराशा, और पिपासा|
पंख उगे थे मेरे जिस दिन
तुमने कंधे सहलाए थे,
जिस-जिस दिशि-पथ पर मैं विहरा
एक तुम्हारे बतलाए थे,
विचरण को सौ ठौर, बसेरे
को केवल गलबाँह तुम्हारी,
अर्पित तुमको मेरी आशा, और निराशा, और पिपासा|
ऊँचे-ऊँचे लक्ष्य बनाकर
जब जब उनको छूकर आता,
हर्ष तुम्हारे मन का मेरे
मन का प्रतिद्वंदी बन जाता,
और जहाँ मेरी असफलता
मेरी विह्वलता बन जाती,
वहाँ तुम्हारा ही दिल बनता मेरे दिल का एक दिलासा
अर्पित तुमको मेरी आशा, और निराशा, और पिपासा|"
सदा की तरह आपके सुझावों और विचारों का स्वागत और इंतेजार रहेगा।
आपका
उमाकान्त त्रिपाठी।