प्रिय मित्रों,
आज दिनाँक 11 मार्च 2018 को सायंकाल आपसे मिल रहा हूँ तो कुछ बिंदु आपसी संवाद हेतु।
1.विगत दो दिनों की छुट्टियों में अपग्रेडेड पाय स्केल के बारे में गहन अध्ययन किया।निराशा और हताशा की जब नवोदय,दिल्ली के शिक्षकों के संघ अपने हितों हेतु संघर्ष कर रहे थे तो हम कह थे।एक पत्र तक नही किसी ने लिखा।
आज जब माननीय सर्वोच्च न्यायालय तक ने इसे ठीक कह दिया तो भी हम अपने नींद से जागने को तैयार नही।
1992 से 2006 तक के शिक्षकों का हित 4 से 5 लाख तक का नुकसान, हर माह 4-5 हजार अलग पर सब मौन है और इंतेजार कर रहे है कि करिश्मा ही जाए।
वैसे बता दूं माननीय न्यायालय ने इस हेतु आदेश भारत सरकार को दिया है पर दुर्भाग्य वश कोई समय सीमा नही निर्धारित की अतः आशंका की ये भी MACP की तरह हो जाएगा।
पूरा शिक्षक समाज MACP का लाभ ले रहा है और इसका भी लगा पर हम नही।
विस्तृत निर्णय ब्लॉग पर अपलोड आपके लिए।
2.सेवानिवृत कर्मचारियों का वेतन और एरियर-हमारे इस साथियों को 7वे वेतनमान का लाभ अभी तक नही मिला।हर माह पेंशन तक मे देरी हो रही है।
विगत दिनों जब ग्वालियर में इंसर्विस कोर्स में था तब एक सेवानिवृत्त उपायुक्त इस हेतु अपनी व्यथा और रोना रो रहे थे।
ईमानदारी से कहूँ उनकी बात पर दुख कम खुशी ज्यादा ही रही थी,की आज इनको यूनियन और हमारी याद आई जब अपने पर बन पड़ी।
हमारी सहानुभूति अपने सेवानीवरित्त साथियों के साथ पर ये अधिकारी जो अपने आप को एक बार चने जाने के बाद खुदा समझने लगे जाते है,उनके साथ अच्छा ही है।
वे सेवा में रहते हुए भूल जाते है कि माननीय आयुक्त और अतिरिक्त आयुक्त प्रशाशन के अलावा सभी एक ही है और एक के नियम कानून से बढ़े है।
ये लोग हर कार्य करते है जिससे संघ कमजोर हो।
3.7 सीपीसी का एरियर-विगत दिनों कुछ प्रोजेक्ट स्कूलों में एरियर का भुगतान होते ही इसका श्रेय लेने की होड़ लग गयी।
जिसे इसका abcd भी नही पता वे भी इसे अपना कार्य बताने लगे।उनसे कोई ये पूछे कि नवोदय हमारी तरह ही स्वायत्त संस्था है,वह तो कोई यूनियन भी नही है,तो कैसे वहाँ हमसे पहले न केवल 7 सीपीसी मिला बल्कि एरियर भी??
अंत मे मार्च खत्म होते ही यूनियन और उसके पदाधिकारी आपके पास हाथ जोड़े खड़े होंगे।
ज्यादातर ने तो अपने हेतु साल में छुट्टिया और पॉइंट लेने के अलावा शायद ही किसी विद्यालय में दर्शन भी दिए हो,आप को मौका है उनसे प्रश्न पूछने का और कठघरे में खड़े करने का।
लोकतंत्र है आप सदस्य एज के बने या दूसरे के या न बने बस एक ही विनती।
अगर आपको लगता है कि आपके मेंबर बनने से या न बनने से उन्हें ज्यादा फर्क पड़ता है तो इस मुगालते में न रहे।
ज्यादातर संभाग में मेम्बरशिप छोड़िये पदाधिकारी नही मिलते बनने को,ये तो चाहते ही है कि आप निष्क्रिय रहे और इन्हें कोई प्रश्न न कर सके।
लोकतंत्र को मजबूत करना है तो इसके उत्सव में शामिल होइए,प्रश्न करना सीखिए, पर अपने कर्तव्यों का पालन भी किजिए।
इस अंक का समापन जनाब जावेद अख्तर की लाइव नज़्म 'किसी का हुक्म है, सारी हवाएं.....हमेशा चलने से पहले बताएं...' इस आसा के साथ कि आपको पसंद आएगी।
"किसी का हुक्म है, सारी हवाएं
हमेशा चलने से पहले बताएं,
के इनकी सम्त क्या है
हवाओं को बताया ये भी होगा
चलेंगी जब तो क्या रफ्तार होगी
के आंधी की इजाज़त अब नहीं है.
हमारी रेत की ये सब फ़सीलें
ये कागज़ के महल जो बन रहे हैं
हिफ़ाज़त इनकी करना है ज़रूरी
और आंधी है पुरानी इनकी दुश्मन,
ये सभी जानते हैं
किसी का हुक्म है दरिया की लहरें
ज़रा ये सरकशी कम कर लें, अपनी
हद में ठहरें
उभरना, फिर बिखरना, और बिखरकर फिर उभरना
ग़लत है उनका ये हंगामा करना
ये सब है सिर्फ़ वहशत की अलामत,
बग़ावत की अलामत
बग़ावत तो नहीं बर्दाश्त होगी
ये वहशत तो नहीं बर्दाश्त होगी
अगर लहरों को है दरिया में रहना
तो उनको होगा अब चुपचाप बहना
किसी का हुक्म है, इस गुलशिता में
बस एक रंग के ही फूल होंगे
कुछ अफ़सर होंगे जो ये तय करेंगे
गुलिस्तां किस तरह बनना है कल का
यक़ीनन फूल तो यकरंग होंगे,
मगर ये रंग होगा कितना गहरा,
और कितना हल्का, ये अफ़सर तय करेंगे
किसी को कोई ये कैसे बताए
गुलिस्तां में कहीं भी फूल यकरंगी नहीं होते
कभी हो ही नहीं सकते
के हरेक रंग में छुपकर बहुत से रंग रहते हैं
जिन्होंने बाग यकरंगी बनाना चाहे थे,
उनको ज़रा देखो
के जब एकरंग में सौ रंग ज़ाहिर हो गए हैं तो
वो अब कितने परेशां हैं, वो कितने तंग रहते हैं
किसी को अब कोई कैसे बताए
हवाएं और लहरें कब किसी का हुक्म सुनती हैं
हवाएं हाकिमों की मुट्ठियों में,
हथकड़ी में, क़ैदखानों में नहीं रुकतीं
ये लहरें रोकी जाती हैं, तो दरिया कितना भी हो पुरसुकूं
बेताब होता है
और इस बेताबी का अगला क़दम सैलाब होता है
किसी को ये कोई कैसे बताए।"
सदा की तरह आपके विचारों ,सुझावों का स्वागत और इंतेजार रहेगा।
आपका
उमाकान्त त्रिपाठी।