प्रिय मित्रों,
आज सायंकाल दिनाँक 20 मार्च 2018 को आपसे मिल रहा हूँ तो कुछ बिंदु आपसी संवाद हेतु।
1.CGHS सुविधा दिल्ली और NCR के सभी सेवानिवृत कर्मियों को-देर आए दुरुस्त आये।समानता का अधिकार और भेदभाव का अंत संविधान के द्वारा प्रदत्त मूलभूत अधिकार है,अतः ये तो होना ही था, अच्छा हुआ कि सरकार ने मान लिया और आभार केंद्रीय विद्यालय संगठन का की उन्होंने प्रस्ताव त्वरित रूप से मंत्रालय को भेजा।
इसमे अधिकारियों का भी स्वार्थ आउट हित जुड़ा हुआ है क्योंकि उन्होंने भी कल सेवानीवरित्त होना है,आशा और विश्वास की निरीह कर्मचारियों के बारे में भी इसी तरह के कदम उठाए जाएंगे।
बधाई और आभार उन सभी साहसी लोगो का जिन्होंने इस हेतु मामला माननीय न्यायालय में ले गए और अन्याय और असमानता के खिलाफ आवाज उठाई।
2.संघ के पूर्व अध्यक्ष के प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र देने के संबंध में-एक पूर्व अध्यक्ष ने संघ के प्राथमिक सदस्यता से ही त्यागपत्र दे दिया,उनसे मेरे हमेशा मतभेद रहे है जो कि वैचारिक थे,है और रहेंगे पर वे निश्चित रूप से एक समय,मिलनसार और जुझारू व्यक्तित्व है,आशा है कि वे अपने इस कदम पर पुनर्विचार करेंगे।
इससे क्या जो मुद्दे उन्होंने उठाये है हल हो जाएंगे, विचार करें।लोकतंत्र की यही खूबी है कि विचारों की विभिन्नता रहनी चाहिए और सबको अपनी बात रखने का अवसर मिलने चाहिए।आपके अनुभव से बहुत कुछ सीखने को मिला और मिलेगा अतः कृपया पुनर्विचार करें।
3.संघ का आंतरिक मामला और केंद्रीय विद्यालय संगठन-ये मेरा स्पस्ट मत है,की मतभेद हर जगह होते है और होने भी चाहिए पर इतनी ही विनती की कोई लक्ष्मण रेखा न लांघे,मर्यादा का उलंघन न हों, सभी समस्यायों का समाधान आपसी विचार विमर्श से निकल सकता है और निकलना चाहिए।किसी के नौकरी पर कोई बात बन आये ऐसी कोई कार्य किसी को भी नही करना चाहिए।हम अगर किसी का भला नही कर सकते तो बुरा भी न करें।डर और भय का माहौल नही बनना चाहिए और न बनाना चाहिए,लेखनी की खूबी और कमजोरी यही है,की ये तरकश के तीर की तरह है,एक बार निकल गया तो वापस नही आता।सदियों तक आने वाली पुस्ते इसका दंश झेलती है, MACP का पत्र याद है ना।
साथ रहना न रहना,हर कोई स्वतंत्र है पर इस तरह का कार्य नही होना चाहिए,इतनी ही कर बध्ध विनती है।
अंत मे मलिकजादा जावेद का एक शेर " *सियासत को लहू पीने की लत है ,वरना मुल्क में सब खैरियत है।।"*
उन्ही की नज्म से अपनी वाणी को विराम ,इस आशा से की आपको पसंद आएगी।
" *अंधेरों से मिरा रिश्ता बहुत है
मैं जुगनूँ हूँ मुझे दिखता बहुत है ।
वतन को छोड़ कर हरगिज़ न जाना
मुहाजिर आँख में चुभता बहुत है ।
ख़ुशी से उस की तुम धोका न खाना
परेशानी में वो हँसता बहुत है ।
किसी मौसम की फ़ितरत जानने को
शजर का एक ही पत्ता बहुत है ।
मोहब्बत का पता देती हैं आँखें
ज़बाँ से वो कहाँ खुलता बहुत है ।
मियाँ उस शख़्स से होशियार रहना
सभी से झुक के जो मिलता बहुत है।।"
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आपके विचारों और सुझावों का स्वागत और इंतेजार रहेगा।
आपका
उमाकान्त त्रिपाठी।