प्रिय मित्रों,
आज दिनाँक 27/04/2018 को सायंकाल आपसे मिल रहा हूँ तो कुछ बिंदु आपसी संवाद हेतु।
1.अदभुत, अविस्मरणीय, अकल्पनीय निश्चित रूप से जिस द्रुत गति से एक संघ के पदधिकारियो ने माननीय न्यायालय की शरण ली,वे काबिल के तारीफ है,निर्णय दिनाँक 23 और 24 के माननीय न्यायालय के निर्देश जो कि उन्होंने दो अन्य याचिकाओं पर डाली थी,प्रत्याशित और सुनिश्चित ही था।
यहाँ एक बात स्पस्ट कर दूं कि केस के मेरिट पर अभी कोई चर्चा तक नही हुआ है।
एक बात और माननीय न्यायालय के समक्ष OA में पहली बार किसी संघ ने केवल अपने सदस्यों के लिए ही सहायता और छूट मांगी और मिल भी गयी।
ये गलत परिपाटी और खतरनाक प्रेसेंडस होगा।
कल दूसरे संघ भी इस पर चले तो???
2.2014-2015 और 2018-19 में शुन्य रिक्तता दिखाई गई है,अतः कई प्राचार्य योग्य उम्मीदवारों को भी फॉर्म नही भरने दे रहे??
क्यो??सबके अपने अपने तर्क है।इस पर मुख्यालय से स्पस्टीकरण जारी करवाने की जरूरत है।कल रिक्तता जो कि हर बार बढ़ और घट सकती है,जिसे सूचित भी किया गया है,उससे जो लोग योग्य है,उनका हक मार जाएगा।
2018-19 हेतु 5 वर्ष की योग्य और रिक्तता बढ़ घट सकती है,से स्पष्ट है कि फॉर्म भरने दिया जाना चाहिए।
पर ये प्राचार्यो के अहम और नाक की लड़ाई बन गयी है,वे ही सही है।
इस हेतु स्पस्टीकरण जारी होने चाहिए,ताकि अन्याय से बचा जा सके।
वैसे फॉर्म प्राचार्य क्यो शिक्षक का भरेंगे,ये तर्क और नियम ही गलत है,फॉर्म कर्मचारी भरे,जिसे सक्षम अधिकारी नियम अनुसार माने या न माने।
ऐसे तो कोई जवाबदेही तय कैसे होंगी।प्राचार्य ने फॉर्म भरा भी है कि नही??उसकी प्रति तक नही दी जा रही ताकि कर्मचारी अपना केस तो रिप्रेजेंट कर सके??क्या कोई कार्यवाही होगी???
3.अब बात अन्य संवर्ग के शिक्षकों की -जीस तीव्र गति और तत्परता से कुछ सौ लोगो के हित हेतु माननीय आयुक्त से लेकर माननीय न्यायालय तक का दरवाजा खटखटाया गया,ऐसा दूसरे संवर्गो के लिए क्यो नही??
क्या वे सदस्य नही है??क्या वे सदस्यता शुल्क नही देते??
विचार करें और निर्णय ले।क्या कुछ सौ स्नातकोत्तर शिक्षक ही संघ में रहे तो मान्यता भी मिल सकती है??
वर्षो से प्राथमिक शिक्षकों के ग्रेड पे,अपग्रेड पे जिससे सभी प्रभावित है,म्यूजिक टीचर,सिलेक्शन स्केल,मेडिकल,ट्रांसफर,और न जाने कितने मामले है,उसमे ऐसी तत्परता क्यो नही दिखायी गयी।
याद रखिये,जो सत्ता में है वे ही उनका सुख भोगते है,बाकी देश की राजनीति की तरह धर्म,जाती, राज्य और न जाने क्या क्या के नाम पर सिर्फ वोट बैंक है,जिनका साल में अप्रैल में मेंबरशिप के दौरान सिर्फ पूजा जाता है।
अतः अपने अपने संघो में रहकर अपने अधिकारों के प्रति भी सजग रहे,दबाव बनाए और आपसी भाईचारे को बनाये रखें।
दुख सुख में आपका साथी आपके और आप उसके काम किसी संघ या विचारधारा को देख कर नही देंगे।
सदा की तरह आपके विचारों और सुझावों का इंतेजार और स्वागत रहेगा।
विस्तृत ब्लॉग पर।
आपका
उमाकान्त त्रिपाठी।