प्रिय मित्रों,
आज सायंकाल दिनाँक 18/01/2018 को आपसे मिल रहा हूँ तो कुछ बिंदु आपसी संवाद हेतु।
1.अखिल भारतीय केंद्रीय विद्यालय शिक्षक संघ की आंतरिक स्थिति-विगत दिनों इस संघ के आंतरिक उठापटक और खींचतान से आप सभी परिचित है।
RKVAS के साथियों से हमारी वैचारिक मतभिन्नता थी,है और रहेंगी ,वे हमारे विरोधी तो हो सकते है पर दुश्मन नही, किसी की नौकरी ले लेना, पेट पर लात मारना, डराना, धमकाना कब से अखिल भारतीय केंद्रीय विद्यालय शिक्षक संघ की कार्य शैली हो गयी।याद रखिये अन्याय करने वाला और उसे ऐसा करने देने वाला मूकदर्शक बन कर दोनों एक समान पाप के भागी है।
संघ का पदाधिकारी होने के कारण कोसिस की ये बात किसी तरह से बन जाए और ये विघटन और खींचतान और आपसी नुराकुस्ती बन्द हो।
मैं ये विषय सार्वजनिक मंच पर नही उठता परंतु शिक्षकों के प्राचार्यो और माननीय उपायुक्तों को उसकी प्रति भेज कर ,जो डर और भय का माहौल बनाया जा रहा है,उससे चिंतित हूँ,और शर्मशार भी,दोनों पक्षों की या कहे कि तीनों पक्षों की अपनी आपसी अहम है ,तर्क है और कुतर्क।
अगर किसी विषय पर कोई बात कहनी भी थी या है तो उसे संघ के अंदर कहा और किया जाना चाहिए परंतु शिक्षक/शिक्षिकायों के प्राचार्यो और उपायुक्तों को प्रति भेजना निंदनीय है।
क्या नियुक्ति की सूचना प्राचार्यो और उपायुक्तों को दी गयी थी??
नही तो अब क्यो??वो भी बिना दूसरे का पक्ष जाने और सुने??
इससे स्पस्ट है कि निर्णय लिया जा चुका है बस उस पर किर्यान्वित करना बाकी है।
अच्छा है,रोज रोज के ताम झाम से छुटकारा मिलेगा।
अब रही बात 6 मई के मीटिंग के आयोजन की बात ,ये मीटिंग होनी है,इसकी सूचना सभी पदाधिकारियों, केंद्रीय विद्यालय संगठन के सक्षम अधिकारियों को थी,तो उस समय ये मीटिंग गैर कानूनी है,असंवैधानिक है,याद क्यो नही आया??इस बात की सूचना सार्वजनिक पटल पर सोशल मीडिया में देकर हम गए थे तब ही दो शब्द कह देते।
क्यों नही इस बारे में लिखा गया??
अब जब एक पक्ष ने दूसरे को निकाल दिया है तो दूसरा पहले को निकालने में लगा है।
हां इसमे जैसे गेंहू में घुन पिसता है हम जैसे अनेकों साधारण लोग पीस रहे है और पिसेंगे,इन सभी के आपसी अहम और महत्वकांशा में।
परम पिता परमेश्वर पर मुझे पूरा विस्वाश है कि वह न्याय करेंगे पर सभी पक्षों से कहना चाहूंगा कि आप लोगो की आपसी राजनीति के कारण जो शिक्षकों का एक मात्र मंच था जिससे वह अपनी बात कह लेते थे,उस पर आपने जो कुठाराघात किया है उस हेतु ईस्वर कभी भी आप लोगो को माफ नही करेंगे।
आज जो एक व्यक्ति aikvta और aikvta एक व्यक्ति में सिमट गई है वह न उचित है और न शिक्षकों के हित मे।
अगर कोई आरोप लगे है तो उसका जवाब चाहे एक आम शिक्षक ने ही क्यो न लगाएं हो दिया जाना चाहिए था,हम अवश्य समय सीमा में जवाब देंगे,विस्वास रखें।
किसी भी लोकतांत्रिक समाज मे आलोचना और संवाद सदा होते रहने चाहिए।
मेरा मानना है जो नेतृत्व आलोचना और संवाद से डरता हो या डरता हो उस हेतु लोकतंत्र में कोई जगह नही हो सकती।
अब रही बात कुछ मुद्दों की जिसे मैंने 6 मई की मीटिंग में भी रखा था,फेसबुक पर लाइव था,उसे आप सभी अक्षरशः सुन सकते है।
1.श्री सुरेश कुमार शर्मा जी से गलती हुआ है,इसमे दो राय नही पर उसे हमे संघ के अंदर सुलझाना चाहिए था,संवाद से विचार विमर्श से।कुछ वरिष्ठ लोगो को माननीय आयुक्त जी से मिल कर इस घटना हेतु छमा और खेद प्रकट करके मामले को खत्म करने की कोसिस की जानी चाहिए थी न कि इस मामले को तूल देकर,आग को और भड़का कर।किसी के नौकरी पर बात आ जाये इसका मैं कभी समर्थन नही कर सकता।
2.श्री बिसेन जी और महेश शर्मा जी के मामले में संघ के महासचिव के द्वारा शिक्षकों की शिकायत करना गलत और निंदनीय था और है।ये संघ का काम नही है।
हम अगर किसी का भला नही कर सकते तो बुरा भी न करें।
3.श्री नयन जी का 6 वर्षो हेतु निष्कासन जल्दबाजी में बिना नैसर्गिक न्याय के नियमो का पालन करके हुआ।
4.अलग संघ बनाना सबका लोकतांत्रिक अधिकार है पर किसी संघ को इस प्रकार गैर मर्यादित और गैर लोकतांत्रिक तरीके से तोड़ना गलत था,है और रहेगा।
5.एक हारे हुए प्रत्याशी श्री सुखबीर सिंह मालिक जो न 25 में है,न 125 और न 625 में उनको संघ का अध्यक्ष बना देना गलत था,है और रहेगा। **उन पर और उनके कारण MACP न मिलने का आरोप और उनके कार्यकाल में कोई लेखा जोखा न देने का आरोप है पर उसका समुचित उत्तर आज तक उन्होंने नही दिया।
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6.बिना किसी को मौका दिए ,नैसर्गिक न्याय का पालन किये हुए पूरे CEC को,9 संभागीय इकाइयों को भंग करना भी अनुचित कदम था है।किसी से विरोध होने के कारण आप सभी को बाहर निकल दे,ये गलत है,न्याय नही।
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रही बात तर्क की और कुतर्क ही,सभी पक्षों की आप रोज सुन रहे है और सुनेंगें, आप सभी उस पर विचार कर निर्णय ले कौन सही और कौन गलत।
जब अब हर मामले में केंद्रीय विद्यालय संगठन को लाने की परिपाटी बन गयी है तो सभी पक्षों ने अपने दावे संगठन के सामने ठोक दिए है। न्याय यहीं कहता है कि अब केंद्रीय विद्यालय संगठन ,न्यायालय के निर्णय का इंतेजार करें और जो भी निर्णय होगा सबके सर् माथे पर।
अंत मे यहीं की अभी भी समय है,बड़ी बड़ी लड़ाई मेज पर विचार विमर्श से खत्म होती है।ये एक आंख के बदले में आंख की परिणति में संघ का ही विघटन न हो जाए।बाकी प्रभु इक्छा ।
सदा की तरह आपके विचारों और सुझावों का इंतेजार रहेगा।
आपका
उमाकान्त त्रिपाठी।