प्रिय मित्रों,
आज सायंकाल दिनाँक 16 मार्च 2018 मिल रहा हूँ तो कुछ बिंदु आपसी संवाद हेतु।
1.CGHS-आज पूरे दिन CGHS के केस और इस पर केंद्रीय विद्यालय संगठन के जवाब की चर्चा सोशल मीडिया पर छाई रही।एक वरिष्ठ अधिकारी के माध्यम से कहा गया कि केंद्रीय विद्यालय संगठन ने जवाब माननीय न्यायालय में जमा कर दिया है,पॉजिटिव है,सब अच्छा है।
आपको याद है कुछ महीनों पहले ऐसा ही भ्रम बोनस को लेकर भी फैलाया गया,क्या हुआ??सबको पता है।
विचार करने वाली बात है कि CGHS को केंद्रीय विद्यालय संगठन ने नही स्वास्थ मंत्रालय ने सीमित संसाधन का हवाला देते हुए मना किया है,इस हेतु संसद के पटल पर सरकार ने कई बार जवाब दिया है।
जब हम कर सकते थे तब सोए रहे और अब ये सुगुफा,ऐन सदस्यता से पहले ,किसको वेवकूफ बना रहे है।
कुछ महीनों पहले की बात है बड़े बड़े दावे मेडिक्लेयम पालिसी और उसके बखान को लेकर किये जा रहे थे ,उसका एक मीटिंग के अलावा दो सालों में क्या हुआ??
समस्या ये है कि हमे पता ही नही है कि हम चाहते क्या है??,न विचार और न विमर्श??,कुछ लोग अपनी चीर निद्रा से उठ कर जाते है और एक सगुफा छोड़ देते है।
विचार करें
1.अगर CGHS चाहिए था तो केस किसने,क्यो और कब किया, इसका उत्तर कौन देगा??
2 CGHS चाहिए था तो इस हेतु मीटिंग और इसने सुझाव कसने और क्यो दिए??
3.अब उस केस के बाद स मेडिकल पालिसी का क्या होगा??
मित्रो इसका हाल भी MACP की तरह ही होने वाला है,जिसमे हमे पता नही हम चाहते क्या है??कभी कोई माननीय सिलेक्शन स्केल हेतु पत्र चला देते है और फिर कोई MACP हेतु केस कर देता है??
अब सोचिये कहीं और ऐसा विरोधाभास देखा है।ये तो ऐसा है कि हम हवा में तीर चला रहे है और प्रार्थना की ये नही तो वो मिल जाये।
ईस्वर सद्बुध्दि दे।
2.रिक्रूटमेंट रूल्स हेतु समिति-कितना दुखद है कि एक भी पत्र अन्य श्रेणी के शिक्षकों के प्रमोशन और उनके कार्य के ऊपर इसमे नही लिखा गया,मीटिंग के जो बिंदु सोशल मीडिया में आये है,उससे तो ये ही लगता है।अगर अन्य श्रेणी के शिक्षकों की मांग को संघ ही नही रखेगा और उनके साथ सौतेला व्यवहार करेगा तो कौन सुनेगा।
ये तो सिर्फ इतनी विनती कर रहे है कि भारत सरकार के नियानानुसार जो लोग अहर्ता ओरी करते है उन्हें प्राचार्य और उओ प्राचार्य के परीक्षा में बैठने दिया जाए,जी योग्य होंगे निकाल लेंगे??इसमे क्या दिक्कत है,ये कोई कोटा तो मांग नही रहे??,फिर ये बेरुखी क्यो??
दूसरा इनके कार्यो और बोझ पर भी कमेटी बने और स्वतंत्र रूप से अध्ययन करें??क्या दिक्कत है।
हा शिक्षकों में भी TGT साइंस,TGT संस्कृत, पीजीटी कंप्यूटर,कॉमर्स और तीन सेक्शन में अंग्रेजी के साथी 36 पीरियड और छात्रों का दबाव झेल रहे है,क्या कोई इस हेतु कुछ बोलेगा??
अगर नही तो क्यो नही इस पर कोई विचार अब तक किया गया??
3.केंद्रीय विद्यालय जगिरोड-इस विद्यालय में पिछले कई महीनों से साथियो को वेतन नही मिल रहा,पर कोई भी राष्ट्रीय नेता वहाँ जाने की आज तक कोशिश भी नही किया क्यो??
ये हमारे ही साथी है,आज इन ओर संकट है,कल हम पर होगा,वे अकेले भूखे मरने को छोड़ दिये गए है,याद रखिये,मार्टिन लूथर किंग ने कहा था कहीं भी हो रहा अन्याय ,हर किसी के लिए खतरा है।
इनके बात और हितों को नजर अंदाज मत करे,जरूरत पड़े तो धरना प्रदर्शन जो ये अकेले कर रहे है,उसमे इनका न केवल साथ दीजिये बल्कि इसे दिल्ली में लेकर आईये।
कोई भी लोकतांत्रिक शासन इस मानवीय त्रास्दी में आपके विरुद्ध नही बल्कि साथ होगा।
अंत मे बस इतनी सी विनती कुमार विश्वास के शब्दों में।
" *हमने कहा अभी मत बदलो, दुनिया की आशाएँ हम हैं !
वे बोले अब तो सत्ता की वरदायी भाषाएँ हम है !
हमने कहा व्यर्थ मत बोलो, गूँगों की भाषाएँ हम हैं !
वे बोले बस शोर मचाओ, इसी शोर से आए हम हैं !"
सदा की तरह आपके सुझावों और विचारों का इंतेजार और स्वागत रहेगा।
आपका
उमाकान्त त्रिपाठी।